डॉ आंबेडकर का योगदान महिलाओं को बना गया उनका ऋणी


 


 


14 अप्रैल पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़े ही उत्साह व जुनून से मनाया जाता है। इस वर्ष बाबा साहब की 127 वीं जयंती मनाई जा रही है। दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत तक और पश्चिम भारत से पूर्वी भारत में डॉ. अंबेडकर जयंती की रौनक देखते ही बनती हैडॉ. अम्बेडकर के कार्यों व चिंतन के बारे में बात करें तो अक्सर बात दलित वर्गों तक आकर, यहाँ तक की बात आरक्षण पर आ कर रुक जाती है। आजाद भारत में डॉअम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है। जबकि डॉ. अम्बेडकर के समस्त कार्यो का मूल्यांकन करे तो हम पाएंगे कि वे एक कुशल अर्थशास्त्री, समाजवैज्ञानिककानून विशेषज्ञ, मजदूर नेता थे, पत्रकारिता में प्रखर विद्वान और महिलाओ के अधिकार के चैम्पियन थेउनके पहले महिलाओं से संबन्धित उन तमाम अधिकार उन्हें प्राप्त नहीं थे जो आज कानून के दम पर मिल रहा हैइसका श्रेय उन्हीं को जाता है। बाबासाहेब ने सविंधान के द्वारा महिलाओं को सारे अधिकार दिए है जो मनुस्मृति नकारे थे। हिन्दू धर्मशास्त्रों में महिलाओं का स्थान और नियम-कानून महिलाओं के हक में नहीं हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्त्री धन, विद्या और शक्ति की देवी हैं। लेकिन बाबा साहब ने इसे गलत सिद्ध करते हुए महिला विषयक कानून बनाए। डा. अंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। डा. अंबेडकर का दृढ. विश्वास था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में सामाजिक बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक उन्नति उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी। बाबा साहब ने संविधान मे महिलाओं को सारे अधिकार दिये लेकिन अकेला संविधान या कानून लोगों की मानसिकता को नहीं बदल सकता, पर सच है कि यह परिवर्तन की राह तो सुगम बनाता ही है। हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने के लिए देश के पहले कानून मंत्री के रूप में आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया। डॉ अम्बेडकर एक प्रबद्ध भारत का सपना देखते थे अतः उन्होंने सविधान के पहले पन्ने पर यानि की प्रस्तावना में सभी जातियों के स्त्री पुरुषो को बराबरी दी। स्त्री-पुरुष असमानता व छुआछूत की समाप्ति करके समानता की गारंटी दी। गरीब अमीर, मजदूर, मालिक के बीच सामाजिक समानता का सूत्रपात किया। वर्ण वर्ग जाति लिंग भेद रहित सभी को वोट देने का अधिकार दिया । डॉ. अम्बेडकर ने महिलाओ को समानता दिलाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। युनिफार्म सिविल कोड से लेकर हिन्दू कोड बिल को लाने में उन्होंने परजोर ताकत लगाया कि महिलाओ को समाज में बराबरी का हक मिले उन्हें पति और पिता की सम्पति में भाइयो के साथ सम्पति का हक मिले । पति की सम्पति में वैवाहिक सम्पति में हक मिले जिससे पति और ससुराल ली गलामी से वो मुक्त हो कर अपना जीवन स्वाभिमान से जी सके ।हिन्दू कोड बिल ने महिलाओ के भरण-पोषण, तलाक लेना न देने के साथ साथ पति की हैसियत के हिसाब से खर्चे का अधिकार दिया। भारतीय सविधान ने औरत को दत्तक पुत्र पुत्री गोद लेने व अपनी सम्पति संरक्षण का अधिकार दिया। अपनी मर्जी से जीने ओर अपनी आजादी से आने जाने का हक दिया। महिला कर्मचारियो को प्रसति अवकाश और मजदूर औरतो को पुरुष मजदरो के समक्ष न्यनतम वेतन व समान वेतन समान घंटे काम का अधिकार मिलाइतने सब अधिकार महिलाओ को बिना लड़े, बिना संघर्ष किये आराम से मिल गये ।डॉ. अम्बेडकर की जयंती को दलित महिलाएं एक महिला के रूप में डॉ अम्बेडकर के महिलाओ के प्रति योगदान को याद करती हैं। वहीं दूसरा खेमा जिसमें सवर्ण महिलाएं शामिल हैं उनकी जयंती को नजरंदाज करती हैं। दलित महिलाएं डॉ. अम्बेडकर की जीवनी पढ़ कर उनके संघर्षों के साथ स्वयम् को जुड़ा देखती है। और दलित स्वयम् को एक इंसान के रूप में अपने मानवीय हकों को पाने व भोगने के लिए डॉ. अम्बेडकर के योगदान को नहीं भूलते। महिलाओं के अधिकारों के चैम्पियन 'डॉ.अम्बेडकर को याद न करने वाली महिलाओ के बारे में क्या कहा जाये ? उनके शोध ..विमर्श और लेखन में डॉ अम्बेडकर और उनकी विचारधारा कही दूर तक नहीं आते तभी तो नयी पीढिया अब सवाल करने लगी है की महिला आन्दोलन डॉ. आंबेडकर को क्यों नहीं जनता?आज की युवा महिला वर्ग बाबा साहब को न के बराबर जानती हैं। जानती भी हैं तो सिर्फ साधारण महापुरुष की तरह। दलितों, पिछड़ों, महिलाओं के मुक्तिदाता के रूप में या संविधान निर्माता के रूप में नहीं। इन पक्षों के पीछे साजिश भी है और समर्थन भी है। आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद राजनीति की दिशा और दशा दोनों एक निर्धारित परिपाटी पर चलने लगी हैं। धीरे-धीरे स्थितियाँ बदल रहीं हैं। भारत के राष्टपिता कहे जाने वाले गांधी जी को लोग छोडकर लोग बाबा साहब की तरफ भाग रहे हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां बाबा साहब को साथ लेकर चलने को उत्सुक दिख रहा है। वामपंथ व अन्य सभी दल इनकी ओर झुक रहे हैं। अक्सर कहा जाता था कि 21वीं सदी बाबा साहब की होगी। धीरे धीरे वह सच होता दिखाई दे रहा है। खैर चाहे जो भी सभी वर्ग की महिलाओं को बाबा साहब के कार्यों को न चाहते हुए भी उन्हें अपनाना पड़ेगा। समग्र महिला समाज बाबा साहब के अहसानों तले हमेशा दबा रहेगा। हमेशा उनके कार्यों का ऋणी रहेगा। अब समय है की महिलाएं उनके कार्यों को आगे बढ़ाने का कार्य करें। आज हम महिला सशक्तिकरण पर डॉ. अंबेडकर के विचारों की बात न करें तो ये बेमानी होगी। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलितों व महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए दो मुख्य अखबारों की स्थापना भी की थी। 'मूकनायक' और 'बहिष्कृत भारत' नामक ये अखबार महिला सशक्तिकरण की का मुख्य केंद्र थे। बाबा साहब अंबेडकर हमेशा से ही समाज में महिलाओं के प्रति के के समर्थक थे। न्यूयॉर्क में पढ़ाई के दौरान अपने पिता के एक करीबी दोस्त को पत्र लिखकर कहा था कि बहुत जल्द भारत प्रगति की दिशा स्वंय तय करेगा, लेकिन इस चुनौती को पूरा करने से पहले हमें भारतीय स्त्रियों की शिक्षा की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने होंगे।