नकारात्मक खबरों से जूझती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छी खबर आई है। आईएमएफ के वल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डज्ल्यूईओ) के मुताबिक फांस को पीछे धकेल कर भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इंडियन इकॉनमी का आकार अब 2.6 लाख करोड़ डॉलर हो गया है, जो 2.5 लाख करोड़ डॉलर के मानक के मुकाबले ठीकठाक ऊपर है। माना जाता रहा है कि 2.5 लाख करोड़ डॉलर वाला बिंदु विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को बड़ा बनने की कोशिश में लगी अर्थव्यवस्थाओं से अलग करता है। हालांकि फांस भी भारत से ज्यादा पीछे नहीं है और कुछ अनुमान बता रहे हैं कि शायद इसी साल वह भारत को पछाड़ कर फिर से छठा स्थान हासिल कर ले। मगर भारतीय नीति निर्माता इस उपलज्धि को यूं ही हाथ से नहीं निकलने देना चाहेंगे। एक लिहाज से यह है भी नंबर गेम ही हैदेश एक स्थान ऊपर माना जाए या नीचे, इससे न तो देश में रोजगार की स्थिति बेहतर होने वाली है, न ही कंपनियों के मुनाफे में कोई फर्क दिखने वाला है। लेकिन अच्छी रैकिंग न केवल उज्मीद का माहौल बनाती है बल्कि दुनिया को धारणा बनाने में मदद भी करती है। इसका सीधा असर निवेश संबंधी फैसलों पर पड़ता है। विश्व बैंक और मुद्रा कोष ने माना है कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे आवश्यक सुधारों से पैदा हुई कठिनाइयों से भारत काफी हद तक उबर चुका है और अब इसके अच्छे नतीजे दिखने शुरू हो सकते हैं। लेकिन दोनों ने यह नसीहत देने से परहेज नहीं किया कि इन संभावनाओं का पूरा फायदा उठाने के लिए सुधार के लंबित पड़े अजेंडे पर तेजी से अमल शुरू करना जरूरी है। ___वैसे, अर्थव्यवस्था की इस रैंकिंग से उपजे उत्साह का पूरा सज्मान करते हुए भी हमें इसकी सीमाएं याद रखनी चाहिएआज छठा स्थान हमें रोमांचित कर रहा है, पर गणना की दूसरी पद्धति पीपीपी यानी परचेजिंग पावर पैरिटी के हिसाब से तो हम तीसरे स्थान पर खड़े हैं। यानी हमारा मार्केट हमसे कहीं ज्यादा बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों से भी ज्यादा बड़ा है। इसके बावजूद हम बाल कुपोषण, महिला अशिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच जैसे मामलों में अपने से बहुत छोटी और पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं से भी पीछे हैं। यानी अपने देश में आम नागरिकों को जैसा जीवन हम उपलज्ध करवा पाए हैं उसकी क्वॉलिटी की उन देशों से कोई तुलना नहीं हो सकती
छठे नंबर की इकॉनमी